'जल्लीकट्टू'जो भारत के तमिलनाडु राज्य में खेले जाने वाला खेल है,जो पोंगल उत्सव में खेला जाता है।
'जल्लीकट्टू' जो की एक खुले मैदान मे खेला जाता है,की शुरुआत 400bc-100bc के आसपास मानी जाती है,जो की वहाँ के बैलो की अच्छी नस्ल निकालने
और ब्रीडिंग के लिए खेल के रूप मे होता है।
लेकिन जानवरों के उतथान वाली संस्था peta ने सुप्रीम कौर्ट मे यह दायर याचिका मे कहा गया की यह
बेलो पर अत्याचार होता है और लोगो के मरने की भी घटनाएं सामने आती है। तो जल्लीकट्टू पर बेन लगा दिया गया ।
बस यही से विरोध की चिंगारी उठी और पूरा तमिलनाडु
मे हाहाकार मच गया ,की एक परम्परा जो पिछले 2000 सालो से बढ़ रही है उस पर इस तरह प्रतिबन्द लग जायेगा ।
तो माज़रा यह है की कुछ तत्व विदेशी नस्ल के बेलो को बढ़ावा देने के लिए यह कर रहे है।
पिछले 10 सालो के रिसर्च मे पता चला है की देसी नस्ल के बैलो जोकि जल्लीकट्टू मे भाग लेते है उनमे 40 प्रतिशत की गिरावट आई है। तो इस तरह तो देसी बैल ख़त्म ही हो जायेगे । तो जल्लीकट्टू एक माध्यम है देसी बैलो के प्रति प्रेम और उनकी ब्रीडिंग बढ़ाने का ,इसी कोशिश मे तमिल लोग खड़े है।
हां कुछ तत्व है जो बैलो के साथ जितने की कोशिश मे क्रूर हो जाते है तो यह भी धन के लिए है,क्योकि जब से बिज़नस परम्पराओं मे घुसता है तो परम्पराओं का अंत शुरू हो जाता है ।
सीधे सरल शब्दों मे मे यही कहना चाहता हु परम्परा कही भी खोनी नहीं चाहिए ,एक खेल को खेलने का तरीका बदल लो पर खेल बंद न हो।।
'जल्लीकट्टू' जो की एक खुले मैदान मे खेला जाता है,की शुरुआत 400bc-100bc के आसपास मानी जाती है,जो की वहाँ के बैलो की अच्छी नस्ल निकालने
और ब्रीडिंग के लिए खेल के रूप मे होता है।
लेकिन जानवरों के उतथान वाली संस्था peta ने सुप्रीम कौर्ट मे यह दायर याचिका मे कहा गया की यह
बेलो पर अत्याचार होता है और लोगो के मरने की भी घटनाएं सामने आती है। तो जल्लीकट्टू पर बेन लगा दिया गया ।
बस यही से विरोध की चिंगारी उठी और पूरा तमिलनाडु
मे हाहाकार मच गया ,की एक परम्परा जो पिछले 2000 सालो से बढ़ रही है उस पर इस तरह प्रतिबन्द लग जायेगा ।
तो माज़रा यह है की कुछ तत्व विदेशी नस्ल के बेलो को बढ़ावा देने के लिए यह कर रहे है।
पिछले 10 सालो के रिसर्च मे पता चला है की देसी नस्ल के बैलो जोकि जल्लीकट्टू मे भाग लेते है उनमे 40 प्रतिशत की गिरावट आई है। तो इस तरह तो देसी बैल ख़त्म ही हो जायेगे । तो जल्लीकट्टू एक माध्यम है देसी बैलो के प्रति प्रेम और उनकी ब्रीडिंग बढ़ाने का ,इसी कोशिश मे तमिल लोग खड़े है।
हां कुछ तत्व है जो बैलो के साथ जितने की कोशिश मे क्रूर हो जाते है तो यह भी धन के लिए है,क्योकि जब से बिज़नस परम्पराओं मे घुसता है तो परम्पराओं का अंत शुरू हो जाता है ।
सीधे सरल शब्दों मे मे यही कहना चाहता हु परम्परा कही भी खोनी नहीं चाहिए ,एक खेल को खेलने का तरीका बदल लो पर खेल बंद न हो।।
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